भयंकर बेरोजगारी ओर मंदी के लिए क्या आप कहेंगे - " मोदी हैं तो मुमकिन हैं "

               


दिन-बा-दिन देश में बढ़ रहा बेरोजगार और टीवी मीडिया दिखा रहा हिन्दू-मुसलमान ! देश में बेरोजगारों की संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है और हमारी मीडिया रात दिन बेबज़ह के मुद्दों को लेकर डिबेट में जुटी है। क्या कोई ऐसा नेता है जो देश के तमाम घटिया मुद्दों को छोड़ इस देश के बेरोजगार युवाओ के लिए रोजगार की बात या डिबेट करें।


जहाँ तक मेरी सोच-समझ है बेरोजगारी आज जिस चरम सीमा पर पहुंची है उसमे पूर्णतः इस सरकार का दोष तो नहीं है। युवाओ की बढ़ती बेरोजगारी में पिछली सरकारें भी दोषी है। या कहे अभी की और पिछली दोनों ही सरकारें पड़े-लिखे युवाओ का आकलन करना भूल गई। और पड़े-लिखे बेरोजगार युवाओ की संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती गई।


यहाँ तक भी मै दोनों सरकारों में शामिल सभी नेताओ को नासमझ मान लेता हूँ।
पर जब मै २०१४ से  अब तक के समय को देखता हूँ तो ऐसा लगता है मानों सरकार में शामिल इन नेताओ को अब सिर्फ और सिर्फ अपनी सीट की ज्यादा चिंता है युवाओ की कम।


क्योकि देश के ये तमाम नेता टीवी डिबेट में बाते तो बहुत करते है पर बेरोजगार युवाओं की बिलकुल नहीं !


पिछले कई वर्षो से नेता या टीवी मीडिया देश की जनता और युवाओ को मुद्दों से भटकाने के लिए कई तरह के मुद्दे के ऊपर डिबेट कर रही है जैसे धार्मिक उन्माद, देशद्रोही या देशप्रेमी, हिन्दू या मुस्लमान, स्वर्ण या दलित फिर चाहे जनता के लिए इन मुद्दों से ज्यादा जरुरी रोजग़ार है।


चलिए एक नज़र डालते है क्या थे वो मुद्दे जो २०१४ से २०१९ तक चर्चाओं में रहे बेरोजगारी के मुद्दों को छोड़कर।


– फिल्म – पद्मावत रानी पद्मावती के ऊपर बनी ये फिल्म जिसको लगभग एक से तीन महीनो तक नेताओ और मीडिया ने डिबेट का हिस्सा बनाया।
जबकि इस फिल्म के आने न आने से बड़ा मुद्दा देश की बेरोजगारी थी !


– रामरहीम बाबा, इस बाबा का मुद्दा टीवी में इतिहास बनाने वाला लगता है इस तरह की मीडिया कवरेज और नेताओ की बाबाओं के ऊपर की गई डिबेट तो शायद ही पहले कभी हुई होगी। नेता और मीडिया के एंकर ने इस बाबा का जिस तरह मुद्दा बनाया इससे आधा से भी आधा भी अगर बेरोजगारों के बारे में कुछ डिबेट की गई होती तो शायद बेरोजगार युवा बेरोजगार आज अच्छी स्थति में होते।


-गौ-रक्षक गौ-माता के नाम पर एक समय ऐसा था जब अनगिनत हत्या भी हुई और अनगिनत नेताओ और मीडिया डिबेट भी । ये सब डिबेट सिर्फ और सिर्फ राजनितिक पृस्ठभूमि के लिए की गई।


– तीन तलाक, मुस्लिम समाज की महिलाओं को हक़ दिलाने के नाम पर कई महीनो तक रात-दिन नेताओ और मीडिया ने तीन-तलाक को मुद्दा बनाया। जबकी तीन-तलाक में क्या होना है कोर्ट के ऊपर निर्भर है।


– दलित का मुद्दा बहुत दिनों तक चर्चाओं में बना रहा उस समय उत्तरप्रदेश के चुनाव भी चल रहे थे। हर नेता अपने-अपने बोट बैंक के लिए दलितों का राजनीति में उपयोग कर रहे थे पर कोई भी दलितों की बीच बेरोजगारी कितनी है और कैसे बेरोजगारी कम हो सकती है उसकी बात नहीं कर रहा था।


-रफाल मुद्दा 2019 के चुनाव में बिपक्ष का मुद्दा रफाल ही था इसमें सरकार को भ्र्ष्ट साबित करने की कई सारी नाकाम कोशिस की गई। इस रफाल के मुद्दे को रात दिन नेता,अभिनेता ,मीडिया सबने बहुत तबज्जु दी पर किसी ने बेरोजगारी से जुड़े घोटाले पर बात नहीं की।


और भी ऐसे मुद्दे होंगे जिसको शायद में भूल गया पर आपको याद होंगे याद कीजिये क्या कभी आपने युवाओ की बेरोजगारी को मुद्दा बनते देखा या सुना है !!!


बेरोजगारी की बात छोड़ " में भी चौकीदार हुँ " इस विषय पर कानून मंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं !


प्रधानमंत्री से लेकर एक छोटा सा कार्यकर्ता तक अपने आपको " में भी चौकीदार हुँ " बात रहा था ।


इससे अच्छा तो ये होता देश के सारे बेरोजगार ये लिखतें की " मैं भी बेरोजगार हूँ " । फिर शायद ये नारा सार्थक होता " मोदी हैं तो मुमकिन है " !


उदय गुर्जर