क्या ऐसी तो नहीं आपकी जिंदगी, हो तो डाल दो कचरे की पेटी में

       


लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे ये भी अगर हम ही सोचेंगे तो वाकी लोगो का क्या काम ! ऐसे रहो, वैसे मत रहो, ऐसे बोलो, ये मत करो, यहाँ मत जाओ वहाँ  मत जाओ, ज़िन्दगी है की fill in the blanks जैसी लगती है, जिसपे जब जिसका मन चाहता है अपनी नयी रूलबुक लेकर खड़ा हो जाता है।


हम तो हसने के भी मोहताज़ हो गए है, कहा हसना है कहा नहीं, ज़ोर से हसना है या धीरे से, पता नहीं अजीब सी दुनिया रची है इस ऊपर वाले ने सबको एक दूसरे की कठपुतली बना के रखा है।


हर कोई किसी न किसी चीज़ के कण्ट्रोल में चल रहा है।


कोई लोगो के, कोई इलेक्ट्रॉनिक्स के, कोई रिस्तेदार के और कोई किसी का कुछ के, सब के सब बस भाग रहे है। 


हर सुबह एक नयी कश्मकश लिए शुरू हो जाते है और निकल पड़ते है अपनी सासे लेते हुए, सूट बूट पहन के।  कुछ लोगो का न कोई लक्ष्य होता है न कोई आशाएं बस जो जैसे चल रहा है उसको जीते गए, जो दिखा देखते गए, जो सुना समझते गए।



और कुछ लोग तो लाइफ को कुछ ज्यादा ही प्लान करके चलते है  21 की उम्र तक ग्रेजुएशन, 25 तक शादी, 30 तक फाइनेंसियल इंडिपेंडेंस, ऐसा लगता है मनो शुरू से ले क अंत तक सब प्लांड है। 


और मज़े की बात उनके साथ होता भी सब कुछ वैसे ही है जैसा वो सोचे रहते है वाकी बचे है हम जैसे लोग, जो प्लान कुछ करते है और उनका होता कुछ और है, हम लोग उसी केटेगरी के लोग है जिन्हे हर चीज़ से फर्क पड़ता है, माँ ,बाप, दोस्त,यार ,भाई,बेहेन,रिश्तेदार सबसे। 


हम अपने लिए बेबकूफी भरी बाते ज्यादा सोचते है, ऐसा किया तो उसे बुरा लगेगा, वैसा किया तो वो क्या सोचेगा, है बोला तो ज्यादा ओवर तो नहीं लगेगा, न बोला तो बुरा तो नहीं मान जाएगा, हमारी सारी लाइफ दुसरो को मानाने उनके हिसाब से चलने में ही गुज़र जाती है और इन सब के बीच हम खुद को ही खो बैठते है।


हम समझ ही नहीं पते की हमे पानी पूरी ज्यादा पसंद है भुट्टा, कन्फ्यूज्ड रहते है। 


दिल चाहता है की बैठ के सुकून से किताब पढ़े एक प्याली चाय के साथ,  पर दोस्त फ़ोन पे धमकिया दे-दे के बुला रहे होते है घूमने के लिए ।


समझ ही नहीं आता क्या करना है क्या नहीं, और हम इसी कश्मकश में झूलते रह जाते है, कभी अपने अरमानो से मुँह मोड़ते है कभी अपने सपने कुचलते है, और बस ऐसे ही ज़िन्दगी कट जाती है, फिर बाद में बैठे सोचते है की क्या खोया क्या पता और पता चलता है खोयी हर वो चीज़ जो दिल से करना चाहते थे और पया हर कुछ जो दिमाग चाहता था। 



हसीं तो आती है पर खुश नहीं होते, बोलते तो बहुत है पर खुद के अन्दर के तूफान को छिपाने के लिए। 
काश ज़िन्दगी थोड़ी सी सिंपल होती, काश सोचते कम,काश फर्क थोड़ा कम पड़ता, काश सुकून ज़ादा होता, मसरूफ़ियत कम। 


तो दोस्तों अपना तो एक ही फलसफा है उतना ही करो जितना हो पाए, न दूसरों को खुश करने के चक्कर में पड़े न खुद का सुकून हराम करो, क्यूंकि अगर खुद नहीं खुश हुए तो कोई फायदा नहीं किसी भी और बात का।